पहाड़ों की रानी मसूरी के 200 साल पूरे होने को लेकर सवाल खड़े होने लग गए हैं बताया जा रहा है कि 1827 में मसूरी को बसाने का काम कैपटन यंग द्वारा षुरू किया गया था परंतु नगर पालिका द्वारा 1823 का हवाला देते हुए 2023 में 200 साल पूरे होने को लेकर कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसको लेकर कई इतिहासकार और मसूरी से जुड़े लोगों ने एतराज जताया है। उन्होंने कहा कि नगर पालिका के जनप्रतिनिधि राजनीति से प्रेरित होकर इतिहास से छेड़छाड़ कर रहे हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है। मशहूर इतिहासकार और लेखक गणेश शैली ने नगर पालिका परिषद द्वारा मसूरी के इतिहास को लेकर की जा रही छेड़छाड़ को लेकर नाराजगी व्यक्त की है । उन्होंने कहा इस साल के अंत क मसूरी नगर पालिका परिषद के चुनाव होने हैं जिसको लेक नगर पालिका कि जन प्रतिनिधि सस्ती लोकप्रियता को हासिल करने के लिये विना सोचे समझे मसूरी के इतिहास के छेडछाड कर 19 मई को एक हाल में कार्यक्रम आयोजित कर रही है। उन्होने कहा कि कार्यक्रम को लेकर किसी भी इतिहासकार, प्रबुद्ध नागरिक की राय नहीं ली गई। नगर पालिका द्वारा राजनीति से प्रेरित होकर इतिहास से छेड़छाड़ की जा रही है उन्होंने कहा कि उनके पास पुख्ता प्रमाण है 1827 में ही मसूरी का निर्माण कैप्टन यंग के द्वारा शुरू किया गया था।
उन्होंने कहा कि 1823 में मसूरी में कुछ भी नहीं आया था कैप्टन यंग अपने कुछ साथियों के साथ मसूरी के आसपास के जंगलों में शिकार करने जरूर आया करते थे परंतु उस समय मसूरी की स्थापना का कोई प्रोजेक्ट उनके पास नहीं था। उन्होंने कहा कि 1816 में कैप्टन यंग ने ईस्ट इंडिया कंपनी को पत्र लिखकर मसूरी के वातवरण और ठंडे मौसम को देखते हुए घायल और बिमार फौजियो के लिये बैरक बनाने की मांग की थी जिसकी अनुमति इस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा उनको 1826 में दी गई। उन्होंने कहा कि मार्च 1827 में मसूरी के निर्माण को लेकर कार्रवाई शुरू की गई थी । मसूरी के छावनी स्थित आईटीएम के पीछे डेपो बनाया गया था जिसमें पक्का और कच्चे बैरक बनाने का काम शुरू हुआ था जिसका प्रमाण आज भी छावनी परिषद में मौजूद है। उन्होंने कहा कि 1827 में 100 सैनिकों का पहला ट्ररूप मसूरी आया था। जिनका इलाज मसूरी में किया गया था।
उन्होंने कहा कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1826 में इस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा मसूरी में डेपो बनाये जाने की अनुमति मिलने के बाद मसूरी में डेपो बनाने का काम शुरू किया गया था । उन्होंने कहा कि उस समय कैप्टन मैक्लेन द्वारा मेरठ में कच्चे और पक्के बैरक बनाए गए पक्के बैरक अधिकारियों के लिए बने थे और कच्चे बैरक जवानों के लिए जिसका एक नमूना आज भी मसूरी के छावनी परिषद के आईटीएम के पिछले वाले हिस्से में मौजूद है। उन्होने कहा कि 1827 में ही मसूरी को 200 साल पूरे हो रहे हैं और नगर पालिका द्वारा सिर्फ राजनीति से प्रेरित होकर 2023 में मसूरी के 200 साल बिना तैयारी के मनाया जा रहा है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि नगर पालिका द्वारा अगर मसूरी के 200 साल को 2023 में मनाया ही जाना था तो वह राज्य सरकार को भी साथ लेकर मसूरी के इतिहासकारों से मसूरी के बारे में जानकारी लेती । उन्होंने कहा कि नगर पालिका द्वारा 34 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म प्रदर्शित की जा रही है जिसमें उनका भी इंटरव्यू लिया गया है परंतु उनको इस बात का बिल्कुल भी नहीं पता था कि पालिका द्वारा मसूरी के 200 साल के उपलक्ष में आयोजित कार्यक्रम में इसको प्रदर्शित किया जायेगा। उन्होने कहा कि नगर पालिका द्वारा बिना सोचे समझे मसूरी के 200 साल का कार्यक्रम जल्दबाजी में आयोजित कराए गया इसको लेकर सही तरीके की रिसर्च नहीं की गई ।उन्होंने कहा कि मसूरी को लेकर कैप्टन यग का बहुत बड़ा योगदान है जिसको कभी भुलाया नहीं जा सकता परंतु कुछ लोग राजनीति से प्रेरित होकर उनके नाम का भी इस्तेमाल कर रहे हैं जो गलत है। उन्होने कहा कि मसूरी में 1827 में पहला कैन्टोमेंट का गठन हुआ था जिसके बाद पूरे भातर में 62 कंटोनमेंट का निर्माण किया गया और 85 हिल स्टेशन का निर्माण कराया गया।
उन्होंने कहा कि मसूरी में 1827 से 2027 तक का 200 साल के सफर में बहुत कुछ बदलाव देखे गए हैं मसूरी में बहुत सारे होटल गेस्ट हाउस बन गए हैं परंतु अगर मसूरी की पहचान किसी ने बचाई है तो वह यहां के स्कूल और इंस्टिट्यूशन है। मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी और भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस बल होने से यहां पर ऑफिसर्स और जवानों के लिए यादगार रहती है क्योकि उनके द्वारा उनके युवा अवस्था के समय ली गई ट्रेनी हमेशा उनको याद रहती है वह मसूरी का मौसम और वातावरण भी प्रत्येक व्यक्ति जो मसूरी आया हो उसको याद रहती है इसलिए इसको पहाड़ों की रानी कहा जाता है।