ब्रिटेन की सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली महारानी एलिजाबेथ- द्वितीय का गुरुवार को 96 साल की उम्र में निधन हो गया. क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय के साथ दशक लंबे शासन के बाद अब कीमती कोहिनूर हीरे से जड़ा हुआ मुकुट अगल पीढ़ी के पास चला जाएगा. बता दे कि कोहिनूर हीरा भारत की संपत्ति थी जिसे अंग्रेजों द्वारा षड्यंत्र के तहत राजा दलीप सिंह से लेकर इंग्लैंड भेज दिया गया था। वही एक बार फिर कीमती कोहिनूर हीरे को वापस भारत लाने की मांग उठने लगी है। मसूरी के मशहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते है कि कोहिनूर हीरे के मालिक महाराजा दलीप सिंह का पहाडों की रानी मसूरी में इतिहास छूपा हुआ है।
गोपाल भारद्वाज ने कहा कि अंग्रेजों द्वारा महाराजा रणजीत सिंह की संपत्ति और धन दौलत पर कब्जा कर लिया था और अंग्रेज चाहते थे कि महाराजा दलीप सिंह को लाहौर से दूर रखा जाए जिसको लेकर वह महाराजा दलीप सिंह और उनकी मां जिंद कौर वह उनका चचेरे भाई नौनिहाल सिंह को 1852 से 1853 तक मसूरी में रखा गया था। मसूरी अंग्रेजों द्वारा बनाई गई थी जिसके तहत अंग्रेजों द्वारा मसूरी के मेडक स्कूल जहां वर्तमान में होटल सवाय स्थापित है वहां पर दलीप सिंह को शिक्षा दी गई वह दलीप सिंह करे ईसाई समुदाय के बारे में पढ़ाया गया क्योकि अंग्रेज दलीप सिंह को ईसाई बनाना चाहते थे जिसमें वह सफल भी हुए। उन्होने बताया कि मसूरी के बार्लोगंज स्थित मैनर हाउस पर उनका आवास था जहां पर वर्तमान में पांच सितारा होटल जेपी रेजिडेंसी है। उन्होंने बताया कि दलीप सिंह खेलकूद का बहुत शौकीन थे और उनको क्रिकेट खेलना पसंद था जिसको लेकर उनकी देखरेख कर रहे डा लोगिन द्वारा मसूरी के सेंट जॉर्ज कॉलेज मसूरी के मैदान स्थापित किया गया जहां पर दलीप सिंह और अधिकारियों के बच्चों एक साथ खेला करते थे। उन्होने बताया कि 2 साल के अंतराल में मसूरी में दलीप सिंह द्वारा पढ़ाई के साथ मनोरंजन भी किया गया उन्होंने बताया कि दिलीप सिंह मसूरी के माल रोड में घुड़सवारी करते थे वही उनको बांसुरी बजाने का बहुत शौक था और ऐसे मे वह अपने म्यूसीकल टीम के साथ माल रोड बैड प्रर्दशित करते है जिसका सभी लोग आंनद उठाते थे। उन्होंने बताया कि यह स डाक्टर लोगिन की पत्नी लीला लोगिन द्वारा लिखी किताब में यह सभी बाते वर्णित है।
उन्होने बताया कि कोहिनूर को अक्सर दुनिया के सबसे कीमती हीरे के रूप में जाना जाता है, जिसका वजन 105.6 कैरेट है. हीरा भारत में 14वीं सदी में मिला था. जहां तक कोहिनूर हीरे के इतिहास की बात है यह कीमती हीरा आंध्र प्रदेश के गुंटूर में काकतीय राजवंश के शासनकाल में मिला था. वारंगल में एक हिंदू मंदिर में इसे देवता की एक आंख के रूप में इस्तेमाल किया गया था, जिसके बाद मलिक काफूर (अलाउद्दीन खिलजी का जनरल) ने इसे लूट लिया था।मुगल साम्राज्य के कई शासकों को सौंपे जाने के बाद, सिख महाराजा रणजीत सिंह लाहौर में इसे अपने अधिकार में ले लिया और पंजाब आ गए। महाराजा रणजीत सिंह के बेटे दलीप सिंह के शासन के दौरान पंजाब के कब्जे के बाद 1849 में महारानी विक्टोरिया को हीरा दिया गया था. कोहिनूर वर्तमान में ब्रिटेन की महारानी के मुकुट में स्थापित है, जो टावर आफ लंदन के ज्वेल हाउस में संग्रहित है और जनता इसे देश सकती है। उन्होने कहा कि कोहिनूर हीरे पर ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत अपना अधिकार जताते है परन्तु इतिहास के अनुसार कोहिनूर हीरा भारत का है जिसको भारत वापस लाया जाना चाहिए जिसको लेकर भारत सरकार को कार्यवाही करनी चाहिये।
बता दें कि कोहिनूर हीरा वर्तमान में प्लेटिनम के मुकुट में है जिसे महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने इंग्लैंड के सम्राट के रूप में अपने शासनकाल के दौरान पहना था. इस साल फरवरी में, महारानी ने घोषणा की थी कि जब चार्ल्स इंग्लैंड में राजशाही की बागडोर संभालेंगे तो कैमिला पार्कर बाउल्स क्वीन कंसोर्ट बनेंगी. अब, महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के बाद इस बात की पूरी संभावना है कि कैमिला कोहिनूर पहनेगी.
महाराजा दलीप सिंह (6 सितम्बर 1838, लाहौर — 22 अक्टूबर, 1893, पेरिस) महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे पुत्र तथा सिख साम्राज्य के अन्तिम शासक थे। इन्हें 1843 ई. में पाँच वर्ष की आयु में अपनी माँ रानी जिंद कौर के संरक्षण में राजसिंहासन पर बैठाया गया। राज्य का काम उसकी माँ रानी जिंदाँ देखती थीं। इस समय अराजकता फैली होने के कारण खालसा सेना सर्वशक्तिमान् हो गई। सेना की शक्ति से भयभीत होकर दरबार के स्वार्थी सिक्खों ने खालसा को १८४५ के प्रथम सिक्ख-अंग्रेज-युद्ध में भिड़ा दिया जिसमें सिक्खों की हार हुई और उसे सतलुज नदी के बायीं ओर का सारा क्षेत्र एवं जलंधर दोआब अंग्रेज़ों को समर्पित करके डेढ़ करोड़ रुपया हर्जाना देकर १८४६ में लाहौर की संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा। रानी ज़िन्दाँ से नाबालिग राजा की संरक्षकता छीन ली गई और उसके सारे अधिकार सिक्खों की परिषद में निहित कर दिये गये।
दलीप सिंह की सरकार को 1848 ई. में ब्रिटिश भारतीय सरकार के विरुद्ध दूसरे युद्ध में फँसा दिया। इस बार भी अंग्रेज़ों के हाथों सिक्खों की पराजय हुई और ब्रिटिश विजेताओं ने दलीपसिंह को अपदस्थ करके पंजाब को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। कोहिनूर हीरा छीनकर महारानी विक्टोरिया को भेज दिया गया। दलीप सिंह को पाँच लाख रुपया सालाना पेंशन देकर रानी ज़िंदा के साथ इंग्लैण्ड भेज दिया गया, जहाँ दलीप सिंह ने ईसाई धर्म को ग्रहण कर लिया।
दलीप सिंह को अपदस्थ कर उनकी मां महारानी जींद कौर से अलग कर ब्रिटेन भेज दिया गया। जींद कौर को कैद कर लिया गया। ब्रिटेन में दलीप सिंह का 16 साल की उम्र में धर्मांतरण कर उन्हें ईसाई बना दिया गया और उन्हें महारानी विक्टोरिया के संरक्षण में रखा गया।13 साल बाद जब दलीप सिंह अपनी मां जींद कौर से मिले तो उन्हें सिखों के इतिहास और उनकी पहचान के बारे में पता चला। तब दलीप सिंह ने पुनरू धर्मांतरण कर सिख धर्म अपनाने और ब्रिटिश पेंशन त्यागने का फैसला किया। 1886 में वह अपने परिवार के साथ भारत आने वाले थे लेकिन विद्रोह की आशंका के चलते अंग्रेजों ने उन्हें हिरासत में ले कर नजरबंद कर दिया। 1893 में उनका निधन हो गया और उन्हें एल्वेडन गांव में दफना दिया गया।