पंडित जवाहरलाल नेहरू को देहरादून मसूरी में उत्तराखंड से गहरा संबंध रहा। किशोरावस्था से ही वह देहरादून और मसूरी आते रहे। आजादी की जंग के दौरान भी वह लगातार मसूरी आए। देहरादून की पुरानी जेल में वह अंतरालों में कई महीनें जेल में कैद रहे। पं. नेहरू 1932, 1933, 34 व 1941 में कैद रहे। यहां पर उन्होंने भारत एक खोज पुस्तक के कुछ अंश भी लिखे थे। नेहरू जी राजनीतिक बंदी के तौर पर कैद थे। इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने कहा कि नेहरू जी का मसूरी से खासा लगाव था और जब भी नेहरू जी को देश के कार्य से थोड़ी भी फुर्सत मिलती थी वह पहाडो की रानी मसूरी आराम करने आ जाते थे। मसूरी का मशहूर होटल सवाय में रहते थे, जहां आज भी उनके चित्रों से सजी एक गैलरी है। उन्होंने बताया कि नेहरू ने भारत की आजादी के लिए अपना अहम योगदान दिया है जिसके वजह से देश आजाद हुआ है। उन्होंने अंग्रेजों से भारत को आजाद करवाने के लिए बडी यातनाएं झेली पर नेहरू जी के आत्मविश्वास और देश को आजाद कराने के जज्बे ने उन्हें कभी भी अंग्रेजों के सामने झुकने नहीं दिया और 15 अगस्त 1947 में देश को अंग्रेजों के हाथों से आजाद कराया और देश के पहले प्रधानमंत्री बने।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल को मसूरी की वादियां और प्राकृतिक सौंदर्य खूब भाता था। अपने जीवनकाल में कई बार मसूरी आए पं. नेहरू मृत्यु से तीन दिन पहले भी यहीं थे। यहां से लौटते वक्त रास्ते में अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई थी। जिसके बाद दिल्ली पहुंचकर उन्होंने अंतिम सांस ली।25 मई को सुबह लगभग साढ़े नौ बजे पं. नेहरू देहरादून के लिए रवाना हुए, जहां वह सर्किट हाउस में ठहरे। दून में 26 मई को तबीयत बिगडऩे पर उन्हें हेलीकॉप्टर से सहारनपुर के सरवासा हवाई अड्डे ले जाया गया और वहां से हवाई जहाज से दिल्ली भेजा गया। जहां 27 मई को उन्होंने अंतिम सांस ली। इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री के पिता मोतीलाल नेहरू अस्थमा के मरीज थे। स्वास्थ्य लाभ के लिए वह अक्सर मसूरी आते थे। पहली बार वह वर्ष 1906 में मसूरी आए थे।
मसूरी के प्राकृतिक सौंदर्य का जिक्र उन्होंने यहां आने के बाद पिता मोतीलाल नेहरू के स्वास्थ्य में हो रहे सुधार का संदेश देने के लिए एक जून 1914 को माता स्वरूप रानी को लिखे पत्र में भी किया था। प्रसिद्ध साहित्यकार रस्किन बांड ने भी अपनी रचना टेल्स ऑफ मसूरी में जिक्र किया है कि नेहरू परिवार समयांतर पर मसूरी आता रहता है।
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज के अनुसार पं. जवाहर लाल नेहरू मई 1920 में पत्नी कमला और पुत्री इंदिरा के साथ मसूरी आए तो होटल सवाय में ठहरे। उन दिनों अफगानिस्तान और ब्रिटिश के बीच राजनैतिक संधि पर बातचीत के लिए दोनों देशों के डेलीगेट्स भी मसूरी आए थे और सवाय होटल में ही ठहरे हुए थे। अंग्रेजों को जब पता चला कि पं. नेहरू भी उसी होटल में ठहरे हुए हैं तो वह इस बात को लेकर सशंकित हो गए कि कहीं जवाहरलाल बातचीत को प्रभावित न कर दें। उन्होंने पं. नेहरू से मुलाकात की और एक पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा, जिसमें लिखा था कि वह इस बातचीत में कोई दखलअंदाजी नहीं करेंगे। नेहरू ने ऐसा करने से मना कर दिया।इस पर अंग्रेज अधिकारियों ने अपने उच्चाधिकारियों से आदेश लेकर पं. नेहरू से 24 घंटे के भीतर होटल खाली करवा लिया। इसके बाद पं. नेहरू इलाहाबाद वापस लौट गए। 1928 में जवाहरलाल पत्नी कमला नेहरू के साथ फिर मसूरी पहुंचे और सवाय होटल में ही ठहरे। अक्टूबर 1930 में वह पिता व पत्नी के साथ मसूरी आए। तीन दिन यहां रुकने के बाद वापस इलाहाबाद लौटने पर एक आंदोलन में भाग लेने के चलते उन्हें नैनी जेल भेज दिया गया।
1946 से 1964 के बीच जवाहरलाल कई बार मसूरी आए। वर्ष 1959 में मसूरी आने पर पं. नेहरू ने हैप्पी वैली स्थित बिरला हाउस में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने दलाईलामा से तिब्बतियों के विस्थापन पर विस्तार से वार्ता की। मसूरी की इस घटना ने भारत-चीन संबंधों में एक बदलाव देखा गया जिसके परिणामस्वरूप 1962 कायुद्ध हुआ जिसमें भारत को भारी हार का सामना करना पड़ा। दलाई लामा और नेहरू के बीच हुई बातचीत के कारण वर्तमान में मसूरी में कई हजारों तिब्बती रह रहे हैं।
गोपाल भारद्वाज के अनुसार एक बार पं. जवाहर लाल नेहरू सवाय होटल में डिनर के लिए सादे कपड़ों में चले गए। तब ब्रिटिश काल था और डिनर पर ड्रेस कोड के हिसाब से कपड़े पहनकर जाना होता था। होटल के महाप्रबंधक ने पं. नेहरू को ड्रेस कोड में आने के लिए कहा तो वह बिगड़ गए। इसपर होटल प्रबंधन ने नेहरू को होटल खाली करने का फरमान जारी कर दिया। पं. नेहरू रात में ही सवाय छोड़कर लाइब्रेरी बाजार में अपने दोस्त पीएन तन्खा के होटल कश्मीर पहुंच गए।उन्होने बताया की उनके पिता जी द्वारा नेहरू की के जन्मदिन के अवसर पर उनको दिल्ली पत्र के माध्यम से बधाई संदेष भेजा था जिसका जबाब उन्होने पत्र के माध्यम से उनको भेजा और आज भी वह पत्र उनके पर संरक्षित है।
1946 से 1964 तक नेहरू कई बार मसूरी आए। अंतिम सांस लेने से दो दिन पहले भी वे मसूरी में थे। 1954 में, उन्होंने नगर परिषद के तत्कालीन सदस्यों, भोला सिंह रावत और चौधरी राजे लाल से मुलाकात की, उन्होंने उनसे मसूरी में एक डिग्री कॉलेज खोलने का अनुरोध किया। नेहरू, जो स्वयं इलाहाबाद नगर परिषद के अध्यक्ष थे और मसूरी के लोगों की समस्याओं से संबंधित हो सकते थे, ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह जरूरतमंदों को करने का प्रयास करेंगे। यह कहा जा सकता है कि मसूरी में वर्तमान एमपीजी कॉलेज की स्थापना में नेहरू का हाथ था।