
स्वतंत्रता की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले अब्बास तैयब जी की पुण्यतिथि पर मसूरी में उनकी कब्र पर जाकर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें याद किया गया। वहीं अब्बास तैयब जी के पुण्यतिथि को शासन प्रशासन द्वारा भूले जाने पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने नाराजगी व्यक्त की। महात्मा गांधी जी द्वारा अब्बास तैयब जी को ग्रांड ओल्ड मैन ऑफ गुजरात कि संज्ञा गई थी। मसूरी लक्ष्मीपुर कब्रिस्तान में मुस्लिम समुदाय के लोगों अब्बास तैयब जी की कब्र पर पहुचे और उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की गई। अब्बास तैयब जी की कब्र को क्षतिग्रस्त हालत में देखकर नाराजगी व्यक्त की गई। मुस्लिम समुदाय इसरार अहमद ने बताया कि आज अब्बास तैयब जी की पुण्यतिथि है वही अब्बास तैयब जी की पुण्यतिथि को लेकर ना तो शासन ना ही प्रशासन द्वारा कोई कार्यक्रम आयोजित किया गया जो दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि अब्बास जी द्वारा स्वतंत्रता की लड़ाई में अपनी अहम योगदान दिया है उन्होंने बताया कि गांधीजी के साथ रहते हुए अब्बास तैयब जी ने खादी का प्रचार प्रसार किया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद की परंतु आज अब्बास तैयब जी को याद करने के लिए ना तो प्रशासन नाही नेताओं पर समय है सरकार की अनदेखी के कारण अब्बास तैयब जैसे महान स्वतंत्रा सैनानी के नामो निशान को खत्म किया जा रहा है उन्होंने कहा कि अब्बास तैयब जी के नाम पर मसूरी पेट्रोल पंप से गांधी चौक तक का नाम रखा गया था वहां उस मार्ग का प्रचार प्रसार ही नही किया गया है व मसूरी में अब्बास तैयब जी के आवास पर सीपीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस चलाया जा रहा जो दुर्भाग्यपूर्ण है उन्होने सरकार से मांग की है कि अब्बास तैयब के धर को हैरिटेज भवन घोशित कर उस भवन में अब्बास तैयब के जीवन से जुडी चीजों और उनके इतिहास को प्रर्दषित रि म्यूजीयम बनाया जाये। जिससे कि आने वाली पीढ़ी को अब्बास जी के द्वारा किए गए कार्यों के बारे में पता लग सके । बता दे कि अब्बास तय्यब जी मशहुर तय्यब जी ख़ानदान में 1 फ़रवरी 1854 को पैदा हुए थे। वालिद का नाम शमशुद्दीन तैय्यब जी था। बचपन में ही पझ़ने इंगलैंड चले गए और वहां से 1875 में वकालत की पढ़ाई मुकम्मल की और उसी साल हिन्दुस्तान लौट आए, 1893 में बड़ौदा स्टेट के चीफ़ जस्टिस बने, फिर रिटायर होने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। 1915 में महात्मा गांधी से मिले और उनके साथ कई समाजिक कांफ़्रेंस में हिस्सा लिया। जहां उनका हुलिया बिलकुल ही अंग्रेज़ो जैसा था, पर जालियांवाला बाग़ क़त्ल ए आम के बाद उनमे बहुत ही बदलाव आया जब उन्हे फ़ायरिंग की जाँच के लिये कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा नियुक्त कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। जहां उन्होने सैंकड़ो गवाह और पिड़ित से मुलाक़ात की। इस तजुर्बे के बाद वो गांधी के क़रीब आ गए और कांग्रेस का खुला समर्थन करने लगे। मग़रिबी पहनावे को तर्क कर अब्बस तैय्यब जी ने आम जीवन जीना शुरु किया और उन्होने ठर्ड क्लास डब्बे में भारत भ्रमन किया। और बैलगाड़ी पर पुरे गुजरात में जा जा कर खादी कपड़े बेचा।

1928 में सरदार पटेल के बरदौली सत्याग्रह का खुल कर समर्थन किया जिसमें अंग्रेज़ी कपड़े और सामान का बाहिष्कार किया गया। अब्बस तैय्यब जी ने इस दौरान अपने घर में मौजूद विदेशी सामानों को एक बैलगाड़ी में लाद कर बाहर लाए और आग के हवाले कर दिया जिसमें उनकी पत्नी और बच्चों के कई क़ीमती सामान मौजूद थे। अप्रैल 1930 में जो मशहूर डांडीमार्च गांधी जी ने किया था और नमक का कानून तोड़ा था, उसमें अब्बास तय्यब जी भी उनके साथ थे और यह तय हुआ कि गाँधी जी की गिरफ़्तारी के बाद कांग्रेस की बागडोर आप सँभालेंगें। जिसको ले कर एक बहुत ही मशहुर क़िस्सा है।
जस्टिस अब्बास तैय्यब जी की क़यादत में महात्मा गांधी ने गुजरात में कई सफ़ल आंदोलन किया, चाहे वो असहयोग आंदोलन हो या फिर सविनय अवज्ञा आंदोलन, विदेशी सामान का बाहिष्कार हो या फिर शराबबंदी के लिए किया हुआ आंदोलन, सबमें गांधी अब्बास तैय्यब जी के समर्थन के वजह कर ही कामयाब हुए, जिस कारन अब्बास तय्यब जी कई बार गिरफ्तार हो कर जेल भी गए। 9 जून 1936 को जस्टिस अब्बास तैय्यब जी का इंतक़ाल 82 साल की उम्र में मसूरी में हो गया। महात्मा गांधी ने उनकी याद में एक लेख “हरिजन” अख़बार में “ग्रांड ओल्ड मैन ऑफ़ गुजरात” नाम की हेडिंग से लिखा, जिसमें तैय्यब जी को मानवता का दुर्लभ ख़िदमतगार बताया। साथ ही ये लिखा के अब्बास मियां मरे नही हैं, उनका शरीऱ क़बर में आराम फ़रमा रहा है। उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणास्रोत है। इस मौके पर मोहम्मद अयूब मोहम्मद इस्लाम राशिद खान मौलवी मोहसिन दिलशाद अहमद इसरार अहमद मोहम्मद आमिर मोहम्मद हमजा मंजूर खान मोहम्मद कामिल मोहम्मद शाहिद आदि मौजूद थे