राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार एवं पुराना दरबार हाउस ऑफ आर्किलॉजिकल एंड अर्काइयल कलेक्शन ट्रस्ट उत्तराखंड के संयुक्त तत्वाधान में पांडुलिपियों के संरक्षण एवं जागरूकता के लिए शिविर एवं उत्तराखंड की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की प्रदर्शनी का आयोजन नगर पालिका सभागार में किया गया। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि महाराजा टिहरी मनुजेंद्र शाह ने इतिहास, संस्कृति के संवर्धन करने वाले इतिहासकार गोपाल भारद्वाज, गणेश सैली, समीर शुक्ला, मुनीर सकलानी, डा. योगंबर बर्त्वाल, कुसुम रावत, विनोद कुमार, रस्किन बांड, बिल एटकिन, विक्टर बनर्जी, स्टीफन आल्टर को स्मृति चिन्ह, शॉल व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
नगर पालिका सभागार में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि महाराजा मनुजेंद्र शाह ने कहा कि जो हमारी धरोहर व संस्कृति है उसे बचाने के साथ ही उसे भावी पीढ़ी को उसके बारे में बताना भी जरूरी है। उन्होने कहा कि वर्तमान समय में युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति की ओर भाग रही है। उन्होंने कहा कि हमें अपने इतिहास, संस्कृति, बोलीभाषा का संवर्धन करने के साथ ही पांडुलिपियों को बचाने के लिए योजनावद्व तरीके से काम करना होगा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सांस्कृतिक व ऐतिहासिक रूप से समृद्ध है, इसलिए सभी का कर्तव्य है कि अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति संवेदनशील बनें व युवाओं का आह्वान किया कि वे इसे आगे बढाने में सहयोग करें।
चंद्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान उत्तराखंड के अध्यक्ष डा. योगबंर सिंह बर्त्वाल ने कहा कि टिहरी राजशाही का अपना समृद्ध इतिहास है तथा यहां अनेक पांडुलिपियां है जिन्हें खोजने व उसे संरक्षित करने की जरूरत है। प्रदर्शनी में महाराजा सुदर्शन शाह रचित सभागार, रतन कवि रचित फतेह शाह, गुरू गोविंद सिंह हस्त रचित विचित्र नाटक, शंकर गुरू रचित वास्तु शिरोमणि के साथ ही गढवाली भाषा रचित तंत्र ग्रंथ, ज्योतिष ग्रंथ, मंत्र ग्रंथ विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र हैं। इसके अलावा कई घरों में पांडुलिपिया हैं जिसके बारे में किसी को पता नहीं है उसे सामने लाया जाना चाहिए।
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने कहा कि उनके पास मसूरी से संबंधित बहुत इतिहास है उसके अलावा कई पांडुलिपियां है इनकों संरक्षित करने की जरूरत है। कार्यक्रम को गणेश सैली, समीर शुक्ला, आदि ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में ऐसे आयोजन करना जरूरी है ताकि आम जन को सांस्कृतिक विरासत से अवगत कराया जा सके व अपनी बोली भाषा, संस्कृति के संवर्धन में अपनी भूमिका निभाने के लिए जागरूकता लायी जा सके।