मसूरी में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन व्यास कपिल देव शास्त्री ने व्यासपीठ पर आसीन होकर कथा के माध्यम से भगवान के अलग-अलग रूपों के दर्शन कराया. उन्होंने अपनी सुमधुर वाणी से जय भारत एवं कपिल देवहुति संवाद, सत्य और वक्त पर परिचर्चा करते हुए कथामृत का भक्तों को रसपान कराया और कहा कि प्रेम ही परमात्मा का स्वरूप हैं. परमात्मा को प्रेम प्रिय हैं. परमात्मा को पाने का साधन प्रेम ही हैं. प्रेम को प्रकट करने के लिए परमात्मा की कथा नीचे बैठकर सुननी चाहिए. प्रभू को पाने के लिए धुरव की तरह ही दृढ़ संकल्प एक मात्र साधन हैं. श्री शास्त्री ने आगे कहा कि अन्न का कण और संत का क्षण बहुमूल्य होता हैं. समय का सदुपयोग करते हुए भगवान का स्मरण करें, क्योंकि जो समय बीत गया वो कल आएगा नहीं. अतः मनुष्य का सबसे कीमती वक्त हैं, जो पैसे से भी नहीं खरीदा जा सकता. उन्होंने यह भी बताया कि सत्संग जीवन में क्यों जरूरी है. भगवान शंकर ने भारद्वाज ऋषि के पास बैठकर कथा सुनी.
शास्त्री ने आगे कहा कि सत्य के मार्ग पर चलने वालों की कभी हार नहीं होती. पांडवों ने सत्य व धर्म का सहारा लिया और भगवान श्रीकृष्ण का आश्रय लेकर महाभारत में विजय प्राप्त की। बाल व्यास अर्जित नारायण के द्वारा अजय पताद उनियाल जी की पुण्य स्मृति में हो रही भागवत मे अपने वचनों के द्वारा सभी भक्तों का मन मोह लिया । हरि का दीनाद में माता की कपिल गीत का ज्ञान देकर उनका उद्धार किया। जन चरित्र की कथा करते व्यास कपिल देव शास्त्री जी ने कहा भक्ति की कोई उम्र नही होती है मात्र पांच वर्ष की छोटी सी उम्र मे भगवान बालक ध्रुव ने भगवान नारायण को प्राप्त किया और 10 हजार वर्षात तक इस धारा पर राज्य किया मृत्यू आने से पहले अटल ध्रुव पद को प्राप्त किया, इसलिए भगवान की भक्ति करने वाले व भगवान के नाम का स्मरण करने वाले ही इस भवसागर से पार हो सकते है। इस मौके पर अर्जित नारायण उनियाल जी बाल व्यास आचार्य सुनील पोरियाल आचार्य मस्तराम नौटियाल ने भी अपने विचार रखे।