अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और एमपीजी कॉलेज छात्रसंघ द्वारा कॉलेज के बुरांस हाल में आयोजित कार्यक्रम में
कैप्टन विक्रम बत्रा के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें याद किया गया। कालेज के प्राचार्य डॉ अनिल चौहान ने कहा कि सभी को हमारे शहीदों को याद करना चाहिए और उनके बलिदान को भुलाना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन विक्रम बत्रा माँ भारती की रक्षा के लिए कारगिल युद्ध में अंतिम सांस तक दुश्मनों से लड़ते रहे। उन्होंने देश की संप्रभुता-अखंडता की रक्षा के लिए सर्वाेच्च बलिदान दिया, जो आज भी देशभक्ति की एक महान मिसाल है। शिक्षक अनिल सिंह अन्नु ने बताया कि कारगिल की जंग मई से जुलाई 1999 के बीच लड़ी गई थी। इस जंग में एक नहीं सैंकड़ों नाम हैं, जिन्होंने अपनी जान देकर दुश्मन देश पाकिस्तानी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। इन्हीं दिलेरों में एक नाम है कैप्टन विक्रम बत्रा का। बत्रा को कारगिल जंग के दौरान शेरशाह नाम दिया गया था।
शेरशाह जंग के दौरान दुश्मन देश पर कहर बनकर ऐसे टूटे थे कि उनका नाम सुनते ही पाकिस्तानी सेना कांप जाती थी।बिना सैन्य परिवार में जन्मे कैप्टन विक्रम बत्रा का पैतृक आवास हिमाचल प्रदेश का पालमपुर स्थित कांगड़ा घाटी है। विक्रम के जुड़वा भाई का नाम विशाल है। 1999 में पाकिस्तानी सेना द्वारा कारगिल पर आक्रमण के बाद जवाबी कार्रवाई में विक्रम बत्रा को युद्ध शुरू होने के पांच सप्ताह बाद 19 जून 1999 को भारतीय हिस्से को छुड़ाने का टास्क मिला था।पीक 5140 जीतने के बाद सेना के आला अफसरों ने बत्रा को युद्ध के दौरान ही प्रमोट करते हुए कैप्टन से नवाजा। अब नए मिशन के लिए सेना बत्रा और उनकी टीम को आराम देना चाहती थी लेकिन, बत्रा युद्ध से हटने को तैयार नहीं थे। उन्होंने सेना के अफसरों से आराम करने की सलाह पर जवाब में कहा- ये दिल मांगे मोर..। उस वक्त बत्रा के ये बोल मीडिया में काफी वायरल हुए थे। लोग बत्रा की बहादुरी के कायल हो गए और इस तरह कारगिल युद्ध में बत्रा का सफर हमेशा के लिए अमर हो गया।यह पीक सबसे कठिन चोटियों में से एक थी क्योंकि पाक सेना 16 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठकर भारतीय सेना के हर मूवमेंट को देख सकती थी और जरूरत पड़ने पर हमला भी कर सकती थी।
इस चोटी पर चढ़ाई का ढलान 80 डिग्री था। कोहरे ने बत्रा और उनकी टीम के लिए मुश्किल बढ़ा दी। यह मिशन शेरशाह का आखिरी मिशन साबित हुआ।चोटी के ऊपर बैठे दुश्मन को बत्रा के आने की खबर मिल गई और वह युद्ध में गंभीर रूप से घायल हो गए। एक अन्य युवा अधिकारी अनुज नैय्यर ने 7 जुलाई 1999 की रात को अपनी आखिरी सांस तक उनके साथ लड़ाई लड़ी। 8 जुलाई 1999 की सुबह तक भारत ने चोटी 4875 पर फिर से कब्ज़ा कर लिया था लेकिन कैप्टन विक्रम बत्रा को खो दिया। विक्रम बत्रा को मरणोपरांत भारत के सर्वाेच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।इस मौके पर प्राचार्य डॉ अनिल चौहान, पूर्व प्राचार्य सुनील पवार, डाॅ वी.पी जोशी डॉ. प्रमोद भारतीय, डॉ परमार, अमिताभ भट्ट,डॉ इमरान खान,दिनेश जैसाली, डॉ शिप्रा शाह,अनिल सिंह अन्नू,छात्रसंघ अध्यक्ष प्रीतम लाल,उपाध्यक्ष सौरभ सिंह, विश्वविद्यालय प्रतिनिधि मोहन शाही महासचिव रजीत रावत,सह-सचिव शीला जवाडी, सुमित भंडारी,उमेद चंद कुमाई,मनवीर तोमर, अमन, आदि उपस्थित रहे।