मसूरी में उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले नेता और पहाड़ के गांधी स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी की 99वीं जयंती पर मसूरी के बडोनी चौक पर इंद्रमणि बडोनी विचार मंच के द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस दौरान मसूरी में राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के लोगों ने इंद्रमणि बडोनी की मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित कर इंद्रमणि बडोनी अमर रहे के नारे लगाए वही दूसरी और मसूरी गर्ल्स इण्टर कॉलेज, द्वारा उत्तराखण्ड राज्य निर्माण में अविस्मरणीय योगदान देने वाले ष्उत्तराखण्ड के गाँधी इन्द्रमणि बडोनी की जयन्ती लोक संस्कृति दिवस के रूप में मनायी गयी। इस अवसर पर विद्यालय में छात्राओं द्वारा गढ़वाली, जौनसारी, कुमांऊनी नृत्य प्रस्तुत किये गये एवं स्थानीय व्यंजन बनाये गये। कार्यक्रम का संचालन गढ़वाली भाषा में अनामिका कक्षा 10 की छात्रा द्वारा किया गया। प्रधानाचार्या द्वारा छात्रा को पुरुस्कृत किया गया। विद्यालय की समस्त शिक्षिका वर्ग, शिक्षणेत्तर कर्मचारी व भोजन माताऐं उपस्थित रही।
इस मौके पर इंद्रमणि बडोनी विचार मंच के महासचिव प्रदीप भंडारी ने कहा कि अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन की शुरुआत करने वाले इंद्रमणि बड़ोनी को उत्तराखंड का गांधी यूं ही नहीं कहा जाता है इसके पीछे उनकी महान तपस्या व त्याग रही है। राज्य आंदोलन को लेकर उनकी सोच और दृष्टिकोण को लेकर आज भी उन्हें शिद्दत से याद किया जाता है।
इंद्रमणि बड़ोनी आज ही के दिन यानी 24 दिसंबर, 1925 को टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम सुरेश चंद्र बडोनी था। साधारण परिवार में जन्मे बड़ोनी का जीवन अभावों में गुजरा। उनकी शिक्षा गांव में ही हुई। देहरादून से उन्होंने स्नातक की उपाधि हासिल की थी। वह ओजस्वी वक्ता होने के साथ ही रंगकर्मी भी थे। लोकवाद्य यंत्रों को बजाने में निपुण थे। वर्ष 1953 का समय, जब बड़ोनी गांव में सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यों में जुटे थे। इसी दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शिष्या मीराबेन टिहरी भ्रमण पर पहुंची थी। बड़ोनी की मीराबेन से मुलाकात हुई। इस मुलाकात का असर उन पड़ा। वह महात्मा गांधी की शिक्षा व संदेश से प्रभावित हुए। इसके बाद वह सत्य व अहिंसा के रास्ते पर चल पड़े। पूरे प्रदेश में उनकी ख्याति फैल गई। लोग उन्हें उत्तराखंड का गांधी बुलाने लगे थे। उत्तराखंड को लेकर इंद्रमणि बडोनी का अलग ही नजरिया था। वह उत्तराखंड को अलग राज्य चाहते थे। वर्ष 1979 में मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल का गठन हुआ था। वह इस दल के आजीवन सदस्य थे। उन्होंने उक्रांद के बैनर तले राज्य को अलग बनाने के लिए काफी संघर्ष किया था। उन्होंने 105 दिन की पद यात्रा भी की थी।वर्ष 1961 में अखोड़ी गांव में प्रधान बने। इसके बाद जखोली खंड के प्रमुख बने। इसके बाद देवप्रयाग विधानसभा सीट से पहली बार वर्ष 1967 में विधायक चुने गए। इस सीट से वह तीन बार विधायक चुने गए। हालांकि उन्होंने सांसद का भी चुनाव लड़ा था। कांटे की टक्कर हुई थी। अपने प्रतिद्वंद्वी ब्रहमदत्त से 10 हजार वोटों से हार गए थे। संघर्ष करते हुए बड़ोनी का 18 अगस्त, 1999 को देहावसान हो गया। मसूरी ट्रेडर्स एंड वेलफेयर एसोसिएषन के अध्यक्ष रजत अग्रवाल ने कहा कि बड़ोनी के सपने को साकार होना है। बड़ोनी जैसे महान नेताओं ने राज्य को जो विजन दिया था, आज तक हमारे नेता उसे पूरा नहीं कर पाए। वह राज्य को समृद्ध बनाना चाहते थे। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, रोजगार को लेकर बहुत अधिक सजग रहा करते थे।