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टिहरी गढ़वाल थौलधार ब्लॉक के ग्राम गाफर में स्थित भगवान् नागराज का प्रसिद्ध मंदिर कंडीसौड़ से 25 किलो मीटर ऊपर पहाड़ी क्षेत्र पर स्थित है । कहा जाता है की भगवान् नागराज ग्राम गाफर में लगभग दो सो सालों पूराना है हाल ही में सभी क्षेत्र वासियों के सहयोग से मंदिर को नव निर्माण किया गया है। माना जाता है कि भगवान् नागराज अपने दिव्य शक्तियों द्वारा उत्तरकाशी जिला के बनावा गांव आते हुए बंस्युल और गाफर गांव के बीच जंगलों में पर विश्राम किया और विश्राम करने के दौरान भगवान नागराज द्वारा जंगल मेंघास चूंग रही गाय का दूध पिया करते थे। स्थानीय निवासी नरेष प्रसाद खंडूरी ने बताया कि वह गाय बंस्युल गांव के ( राजपूत बयाड़ा परिवार) की थी जब गाय जगल से चुग कर घर वापस लौटती थी तो गाय ने घर में दूध नहीं दिया करती थी। ऐसा होने पर उनको लगा की उनकी गाय का दूध कोई जंगल में निकाल रहा है। एक दिन गाय का मालिक गाय के साथ जंगल में गए तो उन्होंने देखा कि गाय एक पत्थर पर अपना दूध की धार लगा रही थी। उसी दौरान भगवान नागराज साक्षात होकर बोले की मुझे स्थान दीजिए फिर ग्राम गाफर में भगवान नागराज का दिव्य और भव्य मंदिर को स्थापित किया गया।
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उस पत्थर को जिस पत्थर के ऊपर गाय दूध की धार लगा रही थी उस पत्थर को मंदिर में रखकर भगवान नगराज के रूप में स्थापित किया गया। स्थानीय लोगो ने बताया कि जौनपुर क्षेत्र में एक तांबा का टुकड़ा बहकर आयेगा जो नौटियाल परिवार के सदस्य को मिला और इस तांबे का एक वाद्ययंत्र ढोल बनाकर मंदिर में रखा गया जो वर्तमान में भी मंदिर में मौजूद है। तभी से बयाड़ा परिवार को भगवन के (मायिका /मैती) माना जाता है क्योंकि उनकी गाय नें मां के रूप में नागराज को दूध पिलाया था। नौटियाल परिवार को (ससुराल माना जाता है। भगवान नागराज की डोली को हर साल बयाडा परिवार ही निकलते है और इसके पुजारी सिर्फ नौटियाल परिवारे ही होते हैं।